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देश में सांस-सांस का संकट: दिल्ली ही नहीं भारत की पूरी आबादी वायु प्रदूषण की चपेट में, नहीं मिल रही शुद्ध हवा

दिल्ली इन दिनों खतरनाक हो चुकी प्रदूषित वायु के कारण गैस चैम्बर के तौर पर प्रचारित हो रही है। देश की राजधानी की यह हालत निश्चित रूप से गंभीर चिन्ता का विषय है। प्रदूषित हवा दिल्ली के अलावा भी कम से कम 6 राज्यों के दर्जनों शहरों का दम घोंट रही है। दिल्ली, हरियाणा और पंजाब की दमघोटू हवा कि लिए अगर जलती हुई पराली के धुएं को जिम्मेदार माना जाए तो भी महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और बिहार से भी हवा के खतरनाक स्तर तक पहुंचने की पुष्टि केन्द्रीय प्रदूषण बोर्ड कर रहा है। मानकों के अनुसार वायु प्रदूषण सूचकांक (एक्यूआइ) का 300 अंक पार कर जाने का मतलब हवा का बहुत खराब होना माना जाता है और इन दिनों देश के 88 से अधिक नगरों के निवासी इतनी खराब हवा में सांस ले रहे हैं।
WHO और शुद्ध हवा के मानक 
विश्व स्वास्थ संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार-
भारत की लगभग शत्-प्रतिशत् आबादी वायु प्रदूषण से प्रभावित है। प्रदूषण के स्वास्थ्य प्रभाव का देश की आर्थिकी पर भी बुरा असर पड़ रहा है। वर्ष 2017 में प्रदूषणजन्य कैंसर, पक्षाधात और दिल की बीमारियों आदि से बड़ी संख्या में मौतों और श्रमशक्ति के क्षय के कारण देश को 30 से 78 बिलियन श्रम आय का नुकसान हुआ जो कि देश की जीडीपी के 0.3 से लेकर 0.9 प्रतिशत तक था। यही वजह है कि भारत सरकार ने राष्ट्रीय स्वच्छ वायु जैसा प्रभावशाली कार्यक्रम चलाया है।
लैंसेट पत्रिका द्वारा गठित लैसेंट कमीशन के एक नए अध्ययन के अनुसार प्रदूषण के कारण विश्व में 2019 में 90 लाख और भारत में 23 लाख से अधिक लोगों की असामयिक मृत्यु हुई। रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग 17 लाख मौतें अकेले वायु प्रदूषण के कारण हुईं, और विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार वायु प्रदूषण से प्रतिवर्ष विश्व में 70 लाख लोगों की असामयिक मौत हो जाती है। 
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुसार सांस लेने के लिए सबसे शुद्ध वायु शून्य से 50 अंक तक और सन्तोषजनक वायु 51 से लेकर 100 अंक के बीच मानी जाती है और 200 AQI से लेकर 300 तक खराब, 300 से लेकर 400 अंक तक बहुत खराब और 400 से लेकर 500 अंक तक वायु को खतरनाक (सीवियर) माना जाता है।
दिल्ली में टूट गए हैं सारे रिकॉर्ड, हालात बेहद चिंताजनक 
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा सोमवार 6 नवम्बर को जारी वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) के अनुसार हरियाणा के फरीदाबाद के न्यू इंडस्ट्रियल टाउन की AQI 500 अंक तक पहुंच चुकी थी। उत्तर प्रदेश के लोनी की AQI 490 तक पहुंच गई। दिल्ली के राहिणी की AQI 476 अंक को छू गई। दिल्ली के अलावा देश के कई अन्य नगरों की हालत भी कम चिन्ताजनक नहीं है। 
 
नवीनतम 6 नवम्बर को जारी वायु गुणवत्ता सूचकांक के अनुसार बिहार के 7 शहरों का AQI इन दिनों 300 अंक पार कर रहा है। दिल्ली के 32 वायु प्रदूषण जांच केन्द्रों ने 300 अंक से अधिक और 26 ने 400 अंक तक  खराब गुणवत्ता दर्ज की है। इसी प्रकार हरियाणा के 20 नगरों के स्टेशनों ने 300 से अधिक और 4 ने 400 अंक से अधिक AQI दर्ज की है।

मध्यप्रदेश में एक तथा महाराष्ट्र में 2 नगरों तथा राजस्थान के 6 नगरों की वायुगुणवत्ता 300 अंक से अधिक खराब दर्ज की गई,जबकि राजस्थान के ही भिवाड़ी में AQI 462 दर्ज की गई है। दिल्ली से लगे उत्तर प्रदेश की हालत भी चिन्ताजनक बनी हुई है। यहां 17 नगरों में AQI 300 और 6 में 400 पार गया है।

हवा जीवन के लिए अत्यन्त जरूरी है। भोजन के बिना मनुष्य कई दिनों तक जीवित रह सकता है, पानी के बिना भी कई-कई दिनों तक जीवित रह सकता है, लेकिन हवा के बिना कोई कुछ मिनटों से अधिक जीवित नहीं रह सकता। वायु केवल मनुष्यों के लिए ही नहीं वरन् सभी जीवित प्राणियों के लिए आवश्यक है। अगर हवा ही जहरीली हो गई तो जीवन का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा। 
AQI का कांटा इतिहास रच रहा 
वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) हवा की समग्र गुणवत्ता का एक माप है। इसकी गणना पांच प्रमुख वायु प्रदूषकों की सांद्रता का उपयोग करके की जाती है। जमीनी स्तर पर ओजोन, पार्टिकुलेट मैटर (पीएम2.5 और पीएम10), कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड। ग्राउंड-लेवल ओजोन सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में नाइट्रोजन के ऑक्साइड और वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों के बीच रासायनिक प्रतिक्रियाओं से बनता है।

यह स्मॉग का एक प्रमुख घटक है और श्वसन प्रणाली को प्रभावित कर सकता है। इसी तरह नाइट्रोजन डाइऑक्साइड जमीनी स्तर पर ओजोन के निर्माण में योगदान करती है और श्वसन प्रणाली को हानि कर सकती है।

प्रदूषक सल्फर डाइऑक्साइड कोयला और तेल जैसे सल्फर युक्त जीवाश्म ईंधन के जलने से उत्पन्न होती है। इससे श्वसन संबंधी समस्याएं हो सकती हैं और अम्लीय वर्षा के निर्माण में योगदान हो सकता है। कार्बन मोनोऑक्साइड कार्बन युक्त ईंधन के अधूरे दहन से उत्पन्न होती है।

सीसे के अलावा, अन्य भारी धातुएं जैसे पारा, कैडमियम और आर्सेनिक औद्योगिक प्रक्रियाओं और दहन से हवा में छोड़े जा सकते हैं, जिससे स्वास्थ्य के लिए जोखिम पैदा हो सकता है। अमोनिया गैस वायु की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकती है। 
 
भारत में वायु प्रदूषण एक महत्वपूर्ण और जटिल समस्या है, और इसके समाधान के लिए सरकारी नीतियों, तकनीकी नवाचारों, सार्वजनिक जागरूकता और व्यक्तिगत कार्यों को शामिल करते हुए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है।

भारत सरकार को वाहनों, उद्योगों और बिजली संयंत्रों के लिए और सख्त उत्सर्जन मानकों को लागू करने की आवश्यकता है। स्वच्छ ईंधन और प्रौद्योगिकियों के उपयोग को बढ़ावा देने से उत्सर्जन में काफी कमी आ सकती है।

वाहनों से प्रदूषण कम करने के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) अपनाने को प्रोत्साहित करना, सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देना और संपीड़ित प्राकृतिक गैस (सीएनजी) जैसे स्वच्छ ईंधन में निवेश करने से वाहन उत्सर्जन को कम करने में मदद मिल सकती है। स्वच्छ प्रौद्योगिकियों को प्रोत्साहित करना और औद्योगिक अपशिष्ट प्रबंधन को बढ़ावा देना आवश्यक है।

सौर और पवन ऊर्जा जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की ओर बढ़ने से बिजली उत्पादन के लिए जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम हो सकती है, जो वायु प्रदूषण का एक प्रमुख स्रोत है। वनीकरण और शहरी क्षेत्रों में हरित आवरण बढ़ाने से वायु की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद मिल सकती है।

अपशिष्ट पृथक्करण, पुनर्चक्रण और खुले में अपशिष्ट जलाने को कम करने सहित प्रभावी अपशिष्ट प्रबंधन प्रथाओं को लागू करने से हवा में हानिकारक प्रदूषकों को फैलने से रोका जा सकता है।

वायु गुणवत्ता निगरानी नेटवर्क का विस्तार और सुधार प्रदूषण के स्तर का आकलन करने, प्रदूषण स्रोतों की पहचान करने और जनता को वायु गुणवत्ता के बारे में सूचित करने में मदद कर सकता है। सार्वजनिक जागरूकता अभियान से नागरिकों को वायु प्रदूषण से जुड़े स्वास्थ्य जोखिमों के बारे में सूचित किया जा सकता है।

 

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